गर्भवती हैं तो इन 14 बातों का जरूर ध्यान रखें
हर गर्भवती का शारीरिक और मानसिक स्तर अलग होता है। हर गर्भवती की पारिवारिक स्थिति भी अलग होती है। अतः इस
समय संयम से काम लें। यहाँ हम ऐसी ही कुछ जानकारियाँ लेकर आये हैं। गर्भवती महिला को कुछ बातों का जरूर ध्यान
रखना चाहिए।
* सबसे पहले हम मानसिक स्तर के बारे में बात करते है। ये समय एक महिला के लिए सबसे ख़ुशी का अहसास कराने वाला
होता है। इस समय परिवार के सभी सदस्यों को गर्भवती का पूरा ख्याल रखना चाहिए। उसे मानसिक रूप से किसी भी प्रकार
की परेशानी नहीं होनी चाहिए। और ये सबसे पहला कर्तव्य पति और परिवार का है। इस समय महिला में वैसे ही चिड़चिड़ापन
आ जाता है।
अगर आप एक स्वस्थ , सुन्दर, संस्कारी , बुद्धिमान संतान चाहते हैं तो पहले आपको उसके लिए कुछ तो करना ही होगा ना।
इसका सीधे ही गर्भवती से सम्बन्ध है। अगर गर्भवती मानसिक रूप से स्वस्थ और खुश हैं तो संतान भी हंसमुख होगी।
वरना तो चिड़चिड़ापन उसमें भी होगा।
इसलिए गर्भवती को यही सलाह है कि जितना हो सके खुश रहें। और कई बार हमारे मन के मुताबिक चीजें नहीं होती हैं तो उस
समय शांति बनाये रखें । ये आपके और आपके शिशु के लिए सबसे अच्छा होगा। हमेशा याद रखें जैसी आप हैं आपकी संतान
वही बनेगी। खुश रहें शांत रहें । आपके पूरे जीवन की खुशहाली इन्ही नौ महीनों में निर्धारित होती है। इसलिए हमने गर्भसंस्कार
के बारे में आपको जानकारी दी है।
* दूसरे नंबर पर हमारा भोजन आता है। आपने एक कहावत तो सुनी होगी जैसा खाओगे अन्न वैसे बनेगा मन ।
ये तो साफ़ है कि हमारे भोजन का सम्बन्ध शरीर के साथ मन पर भी पड़ता है। अगर हम ज्यादा तीखा या तामसिक भोजन
करते हैं तो हमारे मन में शांति नहीं होगी। गुस्सा , चिड़चिड़ापन , बैचनी महसूस होती है। ये शोध में भी साबित हो चुका है
कि भोजन का सीधा सम्बन्ध शिशु पर पड़ता है।
भोजन को दो रूप में हम खाते हैं। पहले शारीरिक रूप से दूसरा मानसिक रूप से । मानसिक रूप से खाने का मतलब है
भोजन को प्रसन्नता से खाना चाहिए। ध्यान केंद्रित करके खाने से भोजन साधारण होने पर भी 100 गुना लाभदायक होता
है। आपने कभी मजदूरों को देखा है। उनका भोजन कितना साधारण होता है। बावजूद इसके वो इतना कठिन काम करने
में सक्षम होते हैं। और वहीं एक और बादाम , काजू , किशमिश खाने वालों में इतनी शक्ति नहीं रहती है। इसका सीधा अर्थ ये
है कि मजदूर ख़ुशी से भोजन करते हैं। और काजू खाने वाले को कहीं न कहीं वो ख़ुशी और शांति खाते समय नहीं होती है।
हमारे कहने का मतलब बस इतना है , कि भोजन को हमेशा खुश और प्रसन्न मन से ही करना चाहिए।
* योगाभ्यास , प्राणायाम। ध्यान और घर के के नियमित काम करती रहें। ये सभी कार्य आपको मन व शरीर को शांत और तीव्र
बनायेंगे।
जो व्यक्ति अपने शरीर को कष्ट देता है , उसका शरीर उससे सुख देता है। और जो शरीर को सुख देता है उसका शरीर बदले में
उससे कष्ट देता है।
* क्रियाशील रहें । आप जितनी एक्टिव रहेंगी बच्चा भी उतना ही स्वस्थ और स्फूर्तिवान होगा।
* अच्छी किताबे पढ़े। अच्छी बातें कहें और करें। हमेशा स्वाभाव में मिठास रखें। आप जिस भी धर्म की हों धार्मिक किताबें पढ़े
मधुर संगीत सुनें, अच्छी कथाएँ सुने।
* इस समय पति पत्नी के सम्बन्ध में प्रेम और सामंजस्य होना चाहिए । इस समय गर्भवती की भावनाएं कहीं ना कहीं
भविष्य में पति , पत्नी और बच्चे के सम्बन्ध को निर्धारित करती है।
* जितना हों सके स्वयं को शांत रखें । ये शांति ही आपके बच्चे का स्वाभाव तय करती है। आप जितना गर्भावस्था में अशांत
और क्रोध करेंगीं , बच्चा भी उतना ही अशांत और क्रोधी होगा।
* अपने बड़े बुजुर्गों से समय समय पर बात करती रहें । वो आपको कई ऐसी जानकारी देंगे जो आपको किसी किताब, ब्लॉग
कॉउंसलर या डॉक्टर के पास नहीं मिलेगी । ये उनके पूरे जीवन के अनुभव होते है जो वो आपको परेशानी आने से पहले ही
सतर्क कर देते है।
* जितना हों सके प्राकृतिक वातावरण में रहें । मोबाइल, लैपटॉप , टीवी , गेजेट्स से थोड़ी दूरी बना लें।
* कभी कभी अपनी सहेलियों से मिलें या बातें करें । दोस्तों के साथ बिताये हुए पल हमेशा हमें अलग ही खुशनुमा माहौल देते
हैं।
* अपने सोने का, उठने का, नाश्ते का, खाने का, समय निश्चित करें ।
* अपने जीवन को इस समय खुलकर जीयें। आजकल बच्चों में डिप्रेशन की समस्या बढ़ती जा रही है। ये अवसाद की समस्या
तभी होती है जब गर्भावस्था में माँ कहीं न कहीं तनाव में रहती है। अगर माँ खुश है , जोश , उत्साह से भरपूर है तो बच्चा
अवसाद या डिप्रेशन जैसे बीमारियों से कोसों दूर रहेगा ।
* माता पिता ही बच्चे के भविष्य का निर्धारण करते हैं। इसलिए इन छः बातों पर पूरे नौ महीने ध्यान रखना चाहिए :-
शांत मन + पौष्टिक भोजन + स्वच्छ व स्वस्थ वातावरण + आर्थिक रूप से सक्षम + अच्छे विचार + शारीरिक प्राणायाम अगर
इन छः बातों का पति पत्नी ध्यान रखते हैं तो आपका बच्चा गुणों की खान होगा।
* जब भी कुछ खाने की तीव्र इच्छा हों तो दबाएं नहीं । पर ये अवश्य ध्यान रखें कि वो खाद्य पदार्थ आपके और बच्चे के लिए
नुकसान दायक ना हो। इसके आपको दो लाभ होंगे – पहला आप ख़राब खाने से दूर रहेंगी । दूसरा आपके शिशु में सामंजस्य
और समझ पैदा होगी ।
* इस समय में लड़ाई झगडे से दूर रहें । ये समय आपके बच्चे के लिए स्वर्णिम समय है। इसलिए इसका पूरा सदुपयोग करें ।
क्योंकि ये समय बार बार नहीं आता है।
गर्भवती और गर्भावस्थ का सीधा सम्बन्ध पेरेंटिंग ( परवरिश ) से होता है। हमारे ब्लॉग से जुड़े रहने के लिए आपको धन्यवाद।